आखिर लाश कहाँ है???????
कभी कभी विधना भी बड़े निराले खेल रच देती है, ऐसा ही खेल रच दिया था उसके साथ ,
सांवली सलौनी नयन नख़्स बाली गुड़िया हाँ यही नाम था उस अभागन
का चार भाइयों की बहन जमाने के थी वो सांवली पर अपने परिवार की थी वो लाड़ली ,
उस जमाने मे ज्यादा पढ़ाई का चलन न था सो मेट्रिक करा दिया और शुरुरात हो गयी अच्छा घर वर तलाशने की,
एक दिन वह तलाश थमी एक बहुत ही सम्पन्न घर के इकलौतेबेटे पर
हाँ भाई कोई नही दो बहनें थी वो भी शादी शुदा ,
पहले रिवाज न था देखने दिखाने का चार बड़े मिलकर भाग्य विधाता
बनकर कर लेते थे सारे फैसले।
और ऐसा ही हुआ गुड़िया के साथ अठारह साल की उम्र में बन गयी दुल्हन छोड़ बाबुल का घर पिया की नगरी आ वसी,
बहुत बड़ा परिवार था उसका ,
और यहाँ चन्द लोग पर अब रहना तो यहीं था।
पर वो उदास रहती कोई कारण तो था उसकी उस मुस्कुराहट के पीछे ।
सब चलता रहा दिन महीने साल बीते ।
वह दो बच्चों की माँ बन गयी।
कुछ दिन वह नही जान पाई आखिर क्यों उसका रवैय्या इतना बेरुख है ,फिर एकदिन शराब के नशे में सारा सच उगल दिया उसने,
मै तुम्हे कभी अपनी पत्नी का दर्जा नही दुंगा अपनी सूरत देखी है
कहीं से तू तो मेरी केयर टेकर बनने के लायक भी नही कभी मुझसे कोई उम्मीद मत रखना,
यह सब सुनके कुछ नही सबकुछ बिखर गया था उसके अंदर सहम गयी थी वो ,
कुछ फिन बाद उसका रवैय्या और बिगड़ता गया डेली शराब पीना पूरे पूरे दिन गायब रहना।
माँ बाप से उल्टा सीधा बोलना आम बात हो गयी।
कभी कभी तो इस कदर जलालत पर उतर आता उसके सामने
ही शराब सिकरट पीता और अधजले टुकड़े से उसे जला देता।
एक दिन तो हद हो गयी अपने पिता को ही कहा सुनी में कुछ मार दिया खून में तड़पते पिता को छोड़ घर मे पड़ा रुपया लेकर फरार हो गया।
बेचारी बहू जिसने कभी घर से बाहर का रास्ता न देखा था पड़ोसियों
की सहायता से खून में लथपथ ससुर की हॉस्पिटलले गयी।
बच्चों के पास सास को छोड़ा पूरे दस दिन बाद ससुर को स्वस्थ कराके
घर लाई।
मायके बालों को सब पता चल गया ।
सबने कहा हमारे होते हुए भी इतना कष्ट क्यों झेला तूने लाड़ो ,
क्यों एकबार भी न कहा एक इशारा भी न किया।
कैसे कहती माँ आपने ही तो बिदा करते वक्त दो शब्द बोलकर मै
पराई कर दी थी।
जा बेटी अपने घर अब वो ही तेरा सबकुछ है, यहाँ तो अब एक महमान
है तू , मै जब भी अपना दर्द आप लोगों से कहना चाहती वो शब्द मुझे रोक लेते ,
कुछ दिन में आदत हो गयी उसे घुट घुटके जीने की न उसे आना था न वो आया,दिन महीने साल बीते आई तो बस खबरें आज वहाँ है कल वहाँ
न किसी ने ढूढने का प्रयास किया।
पन्द्रह साल बाद जब वह नहीं लौटा सबने यकीन कर लिया वह मर गया।
कुछ दिन बाद खबर आई उसका किसी ने खून कर दिया।
कभी माँ कहती मेरे बेटे की आत्मा भटक रही है उसे मुक्ति दिला दो,
एकदिन सभी बड़ो ने एक और फैसला लिया,
अमावस के दिन बहु को विधबा का रूप धारण कर दिया,
उसके चूड़ी बिछिया, बिंदी ,सिंदूर पोछ दिया,
उसके रंगीन बस्त्रो को हटाकर सफेद साड़ी पहना दी गयी।
उसकी आत्मा चीखती रही ,उसने तो समाज के लिए रिश्ता रखा था,
और मै विधवा क्यों बनू समाज मर नही समाज जिंदा है,
मेरा सुहाग समाज है ।
जब सब उसके हाथो की चूड़ी माँग का सिंदूर छुड़ा रहे थे,
उसके थरथराते होंठो से एक ही बात निकली,
यह सब क्यों कर रहे हो मुझे यकीन नही होता उसका किसी ने खून कर
दिया,
अरे कोई तो मुझे बताओ लाश कहाँ है
यह कहकर बेहोश हो गयी,
फिर सबके मन में यही प्रश्न कौंध गया लाश कहाँ है आखिर।
Babita patel
13-Jul-2023 05:47 PM
nice
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Shalini Sharma
05-Oct-2021 03:10 PM
Nice
Reply
Swati chourasia
01-Oct-2021 05:46 PM
Nice
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